अन्यत्र हिन्दू समाज व हिदुत्व और भारत को प्रभावित करने वाली जानकारी का दर्पण है विश्वदर्पण.आओ मिलकर इसे बनायें-तिलक
Friday, March 18, 2011
रा. स्व. संघ, अ. भा. प्र. सभा संपन्न, दिनांक: 11, 12, 13 मार्च, पुत्तूर (कर्नाटक)
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Saturday, February 19, 2011
Monday, January 17, 2011
नीली गुफा : वीनस का जन्म-------------------------------------विश्वमोहन तिवारी पूर्व एयर वाइस मार्शल
"यहां (उज्जयिनी) रात्रि के अंधकार में जब प्रणयमुग्धा कामिनियां तेजी से अभिसार यात्रा पर निकलती हैं तब उनके जूड़ों में चाव से गुंथे हुए पुष्प और किसलय खिसककर सड़कों पर चू पड़ते हैं। कानों में लगे हुए मनोहर स्वर्ण कर्णफूल गिर जाते हैं और वक्षस्थल पर हिलती हुई मोतियों की माला भी कभी कभी टूटकर बिखर सूर्योदय में इस रहस्य को खोलते हैं।"----------- मेघदूत, कालिदास ,
नीली गुफा : वीनस का जन्म
ऊपर से समुद्र नीलम सा चमक रहा था, कप्री द्वीप की चोटी (अना कप्री) से हम लोग विशाल तिरेनियन समुद्र के धरातलीय फैलाव से उपजी शांति को समेटने का प्रयास कर रहे थे और गाइड बतला रहा था : वह नीचे जो विशाल स्विमिंग पुल वाला बंगला दिखा रहा है विश्वविख्यात एक्ट्रैस रीता हैवर्थ का है, . . . . . . . ऊपर आसमानी नीला, नीचे चारों तरफ क्षितिज के छोर तक फ़िरोज़ी, और द्वीप पर हरीतिमा–इन रंगों की दुनियां में गुलाबी और सफेद बंगले सचमुच लुभावने लग रहे थे। ठंडी ठंडी हवा चल रही थी। 18 कि . मी . समुद्रपार नापोली में (नेपल्स) 35 डिग्री के ऊपर पारा चढ़ रहा था और स्थानीय लोगों के लिए वह कष्टदायक हो रहा था।
ऊंचाई से ज्यादातर प्राकृतिक दृश्य और अधिक सुन्दर लगते हैं बड़ी देर तक उनमें मन रमा रहता है। किन्तु समुद्र पर ऐसा नहीं हो पाता, एक तो चारों तरफ एक रस समुद्री विस्तार और दुसरे वह भी चट्टान जैसा अभेद्य। पर हाँ, विशेषकर आज के आपाधापी से भरे, औद्योगिकी से घिरे कंक्रीट जंगलों में रहने वालों के लिए इस दृश्य की सरलता, क्षैतिज विस्तार और अनुद्वेग नीले रंग से शांति की भावना मन में आती है। संभवतः इस शांति, सुखद शीतलता और सुलभ नरम घूप के लिए कप्री करोड़पतियों का अवकाश स्थल बन गया है। वैसे सूर्यास्त बहुत सुन्दर होता है जो नवरंगों से मनोरम और विविध दृश्यों की रचना कर संभवतः सारे दिन की एकरसता को दूर भगा देता है।
मूंगा जो आभूषण के लिए प्रसिद्ध तथा लोकप्रिय है मुख्यतया भूमध्य सागर में पाया जाता है, इसमें भी कप्री में पाया जाने वाला मूंगा बेजोड़ माना जाता है। मूंगा तथा प्रवाल (कोरल) असंख्य पालिप जंतुओं के ढांचों से बनता है, आस्ट्रेलिया की प्रसिद्ध प्रवाल प्राचीर भी पालिप जंतुओं के ढांचों से बनी है। किन्तु मूंगा और प्रवाल भिÙ–भिÙ जातियों के प्रवाल हैं।
“इस मूंगे के हार की कीमत–1,25,000 लीरे–कुछ ज्यादा लग रही है, 1,00,000 लीरे में नहीं देंगी आप?” मैंने यों ही बात छेड़ने की गरज से उस छोटी सी दुकान पर बैठी युवती से पूछा। हमारे गाइड ने कुल 30 मिनट के लिए हम लोगों को इस विश्व प्रसिद्ध ‘अना’ कप्री के मूंगे के बाजार में छोड़ दिया था। हमारे यहां के मेलों में जैसे लाख की चूड़ियों की छोटी छोटी दुकानें आमने सामने पंक्तियों में लग जाती हैं, बिलकुल वही वारावरण यहां लग रहा था। यूरोप में कहीं भाव–भाव नहीं होता किन्तु कई अर्थों में इटली भारत और यूरोप के बीच में आता है।
कप्री का मुख्य आकर्षण नीली गुफा है जिसे देखने के लिए सौभाग्य की आवश्यकता होती है। नीली गुफा का द्वार समुद्र सतह से मात्र 1 मीटर ऊंचा है। ज्वारभाटे के रूख के अलावा हवा का रूख भी देखना पड़ता है। पिछली बार जब मैं कप्री आया था तब वरुण देव (या नेप्च्यून कहूं?) असांत थे, हो सकता है वरुण देव और पवन देव में किसी वीनस के लिए कहा सुनी हो गई हो। वरुण कह सकते थे कि वीनस का जन्म उन्हीं से हुआ है और पवन कह सकते थे कि वीनस के प्राण तो वही हैं।
और सांद्रो बॉतिचेल्ली ने अपनी रंगीन रेखाओं से जिस वीनस को उकेरा है लगता है कि नीली लहरों पर जीवन का सुन्दरतम स्वरूप है। इतनी रम्य वीनस इतने भोलेपन से इस विशाल नील सागर से जीवन की तरह उद्भूत होकर, स्वयं अपने रहस्य के खुल जाने की चिन्ता न कर गुफ़ा के द्वार बन्द कर स्वयं जीवन का सौंदर्यपान करने गुफ़ा के बाहर आ जाए तब नीली गुफ़ा के बन्द होने पर किसे एतराज हो सकता है। ऐसा सोचकर मैंने कहा, इसी नीली गुफा के दर्शन के बहाने मैं, फिर कप्री आ जाऊंगा।
दोपहर में, जब उस गुफा के द्वार पर पहुंचे तो देखा कि छोटी छोटी नावों की बेशुमार भीड़ लगी थी। गुफा का द्वार उस पहाड़ में एक मीटर ऊंचे एक मीटर चौड़े वातायन सा था। बड़ी नावों से उतरकर लोग छोटी नावों में बैठकर बारी बारी से जा रहे थे। गुफा द्वार में से नाव अन्दर ले जाते समय तगड़े नाविक ने झुकने की चेतावनी दी। जब नाव से गुफा के अन्दर प्रवेश किया तब एकदम अंधेरा घुप्प ही नजर आया और पतवार की हल्की छप छप के अलावा सब शांत। किन्तु थोड़ी ही देर में जब आखें मद्धिम प्रकाश के अनुकूल हो गई तब जो दृश्य दिखा तो जैसे शरीर डुब गया और (चाहे यह विरोधाभास हो) लगा कि जैसे वह संवेदना हमें शरीर के परे ले गई क्योंकि हमें शरीर की सुध ही न रही, ऐसा लगा कि सूर्योदय पूर्व का नीलाभ आकाश सिमिटकर उस गुफा में समा गया हो, मेरी अनुभूति का विश्व भी उस नील गुफा में सिमिट गया। ऐसा लग रहा था कि जैसे वास्तव में गुफा आकाश जैसी विशाल है किन्तु किसी चमत्कार के कारण मैं उसके ब्रह्माण्डों की गहराई तक देख सकता था और इसलिए गुफा छोटी लग रही थी, अथवा मुझ पर किसी तीव्र मादक द्र्रव्य का प्रभाव था जिसके फलस्वरूप मेरी दृष्टि साइकेडेलिक हो गई थी और जिसके कारण वह गुफा छोटी लग रही थी।
तब उस नाविक ने सलाह दी कि जरा घूमकर पीछे तो देखिए। हम लोग गुफा में प्रवेश करने के बाद सीधे भीतर चले जा रहे थे। गुफा लगभग 120 मीटर लम्बी होगी। जब पीछे घूमा तो देखा कि सुर्योदय हो रहा था और सुरज झील के वक्षस्थल पर सिर रखे हुए हैं और उठने ही वाला है। सारी गुफा का प्रकाश एक रहस्यमय नीलापन लिए था। उस नीले प्रकाश की प्रभा बड़ी मनहर लग रही थी। उस नीले भ्राशमान वातावरण म्ों एक एक कण जैसे नीलम सी ज्योति से आलोकित था। क्या आश्चर्य कि हमारे ऋषियों ने भगवान राम और कृष्ण को मात्र सांवला कहकर संतोष नहीं किया वरन उन्हें विश्व को छाया देने वाले आकाश के नील वर्णवाला माना, यथार्थ के स्तर पर, उस नीले रंग का हम सांवलों (कालों 9) पर मात्र एक कमनीयता देने के और कोई प्रभाव नहीं दिख रहा था किन्तु श्वेत वर्ण वाले व्यक्ति कुछ अजीब अवश्य दिख रहे थे।
जब दृष्टि पानी पर पड़ी तो हृदय में हिलोरें उठने लगीं, लगा कि इस कान्तिमय नील जल से युगों का परिचय हो। पता नहीं हृदय के किस किस कोने के कौन कौन से तार झंकृत हो रहे थे, किन्तु )दय में वह अश्रव्य धुन उमड़ी कि संभवतः कुछ वैसी ही धुन में से राग मल्हार उद्भूत हुई होगी। सब तरफ ऐसा ललित प्रकाश था कि ‘तमसो मा ज्योर्तिगमय’ भी अनावश्यक लगे। सभी तरफ सूर्योदय–पूर्व का प्रकाश ही प्रकाश बिखरा हुआ था। कोई भी छाया नहीं पड़ रही थी। सारा वातावरण उस नीली आभा से दमक रहा था। सचमुच कुछ ऐसे ही जीवन्त और ज्योर्तिमय सागर से ‘वीनस’ का जन्म हुआ होगा।
आचानक वह स्वप्न टूट गया, नाविक हमें वापिस गुफा द्वार पर ले आया था और हमारी आंखें उस दोपहरी के प्रखर सूर्य से एकदम चकाचौंध हो गई थीं। उस नाव यात्रा के लिए लगभग 2000 लीरे (28 रुपए) का टिकिट था। बाहर निकलने पर उस नाविक ने बख्शीश मांगी, जब मैं उसे 500 लीरे देने लगा तो उस तगड़े नाविक ने अभद्रता पूर्वक नाहीं कर दी। अपनी मुस्थिति न बिगाड़ने के लिए मैंने तुरन्त ही उसे 1000 लीरे दे दिए।
ई 143्र21, नौएडा 201301
Sunday, October 17, 2010
मानवता हितार्थ के निहितार्थ?
Saturday, September 11, 2010
आत्मग्लानी नहीं स्वगौरव का भाव जगाएं, विश्वगुरु
अन्यत्र हिन्दू समाज व हिदुत्व और भारत को प्रभावित करने वाली
जानकारी का दर्पण है विश्वदर्पण.आओ मिलकर इसे बनायें-तिलक
Thursday, June 17, 2010
भारत व अमेरिका की दुर्घटनाएं (राष्ट्रीय चरित्र)
एक (दुर)घटना 1984 में भारत के भोपाल की, दूसरी 2010 में अमेरिका की, व हमारे नेतृत्व के चरित्र का खुला चित्रण
ओबामा ने कहा था मैं उनकी गर्दन पर पैर रख कर प्रति पूर्ति निकलवाऊंगा ,उसे पूरा कर दिखाया! त्रासदी के 2 माह में करार हो गया (अधिकारों का सदुपयोग अपने लिए नहीं देश के लिए)20 अरब डालर(1000 अरब रु.) - दोष उनके अपने लोगों का भी था किन्तु उन्हें साफ बचा कर ब्रि.पै. पर पूरा दोष जड़ते हुए करार करने में सफल होने पर कोई उंगली नहीं उठी!
बात इतनी ही होती तो झेल जाते, उनका चरित्र देखें, धोखा अपनों को दिया और नहीं पछताते ?
कां. का इतिहास देखें एक परिवार की इच्छा के बिना पत्ता नहीं हिलता, अर्जुन सिंह यह निर्णय लेने के सक्षम नहीं, दिल्ली से आदेश आया को ठोस आधार मानने के अतिरिक्त ओर कुछ संकेत नहीं मिलता? उस शीर्ष केंद्र को बचाने के प्रयास में भले ही बलि का बकरा अर्जुन बने या सरकारी अधिकारी?
प्रतिपूर्ति की बात 14फरवरी, 1989 भारत सरकार के माध्यम 705 करोर रु. में गंभीर क़ानूनी व अपराधिक आरोप से कं. को मुक्त करने का दबाव निर्णायक परिणति में बदल गया! 15000 के जीवन का मूल्य हमारे दरिंदों ने लगाया 12000 रु. मात्र प्रति व्यक्ति 5 लाख पीड़ित व वातावरण के अन्य जीव- जंतु , अन्य हानियाँ = शुन्य? कितने संवेदन शुन्य कर्णधारों के हाथ में है यह देश?
दोषी कं अधिकारिओं को दण्डित करने के प्रश्न पर भी 1996 में विदेशी कं को गंभीरतम आरोपों से बचाने हेतु धारा 304 से 304 ए में बदलने का दोषी कौन? फिर वह भी मुख्य आरोपी को भगा कर अन्य को मात्र 2 वर्ष का कारावास,मात्र 1 लाख रु. का अर्थ दंड क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि मुख्य अपराधी कि जगह बने बलि के बकरे को पहले ही आश्वस्त किया गया हो बकरा बन जा न्यूनतम दंड अधिकतम गुप्त लाभ?
एंडरसन के जाने के बाद इतनी सफाई से उसके हितों कि रक्षा करने वाला कौन? जिसके तार ही नहीं निष्ठा भी पश्चिम से जुडी हो? स्व. राजीव गाँधी के घर ऐसा कौन था? अपने क्षुद्र स्वार्थ त्याग कर देश के उन शत्रुओं की पहचान होनी ही चाहिए।
इसे किसी भी आवरण से ढकना सबसे बड़ा राष्ट्र द्रोह होगा? अब ये प्रमाण सामने आ चुके हैं कि 3 दिसंबर,1984 को अंकित कांड की प्राथमिकी और 5 दिसंबर को न्यायलय के रिमांड आर्डर में भारी परिवर्तन किया गया। इतना सब होने के बाद भी हमारी बेशर्म राजनीति हमें न्याय दिलाने का आश्वासन दे रही है? जल्लादों के हाथ में ही न्याय की पोथी थमा दी गयी है। स्पष्ट है वे जो भी करेंगें वह जंगल का ही न्याय होगा? उस समय हम चूक गए पर अबके किसी मूल्य पर चूकना नहीं है।अपने व अगली पीडी के भविष्य के लिए? लड़ते हुए हार जाते तो इतना दुःख न था जा के दुश्मन से मिल गए ऐसे निकले?
1984 के पाप के बाद क्या अब भी नहीं सुधरेंगे? मंत्री मंडलीय समिति का गठन ऐसे समय में करना जब सब जानते हैं सांप को भगा देने पर लकड़ी पीटने का नाटक किया जा रहा है! नीचता की इस सीमा को देखते हुए कोई स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिए जो निश्छल हो, जनहित में व स्वीकार्य होभोपाल गैस त्रासदी के नवीनतम प्रमाण इसके प्रति कांग्रेस व उसकी सरकारों के असंवेदनशील, निकृष्टतम, दुष्कृत्यों पर कथित योग्य व इमानदार प्र. मं. मनमोहन सिंह देश को स्पष्टीकरण दें
जिनके बिना कां. या सरकार के किसी प्रवक्ता को सुनने वाला कोई नहीं है ?
भौकने वाले पालतू हों या फालतू क्या लेना, बकवास ही सुननी है उनके मालिक ही बकें!
राजनीति की इन घृणित सच्चाइयों पर अब देश की सबसे सत्यवादी,स्वतंत्रता की जनक संविधान रचयिता INC (InterNational Crooks) पार्टी के प्रवक्ता का वक्तव्य सुनिए। वे कह रहे हैं कि अगर एंडरसन को देश से निकाला नहीं जाता तो भीड़ उन्हें मार डालती। देखिए कसाब को जेल में रखने और सुरक्षा देने में नाहक कितना खर्च आ रहा है? वाह हमारे नेता जी और आपकी राजनीति। अपराधियों को दण्डित करने पर व्यय से उत्तम है जेल के फाटक खोल दिए जाएं। इतने अपराधियों और आरोपियों पर हो रहा खर्च बच जाएगा।- इस बेशर्मी का कारण मात्र यह है कि हमारे पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी का नाम इस विवाद से जुड़ा है। अब कांग्रेस और उस पर अंध भक्ति रखने वाले कैसे स्वीकार करे कि गांधी परिवार के उत्तराधिकारियों से भी कभी कोई पाप हो सकता है। देवकांत बरूआ के ‘इंदिरा इज इंडिया’ के नारे व तलवा चाटू संस्कार पाकर बड़े हुए आज के कांग्रेसजन चाटुकारिता की इस प्रतियोगिता में पीछे कैसे रह सकते हैं?।
- कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है सजा दिलाने के लिए कानूनों में परिवर्तन करना चाहिए। विगत 25 वर्ष आप इन सुविचारों के साथ किस कन्दरा में थे मान्यवर? झूठ पर खड़ी कां. व राजीव की छवि कब तक सत्य के प्रकाश से बचाओगे , व इसके लिए कितना गिरोगे ?
क्या मंत्री मंडलीय समिति सक्षम है? चर्चा कर सुनिश्चित कर सके वास्तविक दोषी वास्तव में दण्डित हों? इसके लिए पूरी प्रक्रिया परिवार निष्ठा से नहीं, पूरी सत्य निष्ठा से चले, मंत्रियों/शीर्ष नेताओं व मीडिया वालों से अनुरोध है वे, इन गंभीर प्रश्नों के उत्तर प्र.मं./ सोनिया जी से लें! उससे कम की बकवास से देश वासियों को न छलें! लीपापोती न होकर पीड़ितों को राहत मिल सके?
15000 मृतक नागरिकों,व अन्य पीड़ितों के परिजनों को न्याय मिलने से पूर्व एंडरसन मात्र 6 दिन में कैसे इस देश को छोड़ के जा सका? इतना ही नहीं 15 हजार हत्याओं का दोषी यह व्यक्ति दिल्ली में राष्ट्रपति से भेंट भी करता है।
पीड़ितों के प्रति असंवेदन शीलता, न्याय के प्रति तिरस्कार,समाज व देश के प्रति दायित्व हीनता की कांग्रेसी मानसिकता का इससे बड़ा प्रमाण कुछ और चाहिए तो देखते रहें । अभी तो खेल खुलने लगा हैं! आगे भी यही होगा न्यूनतम दंड अधिकं गुप्त लाभ पाकर बलि का बकरा सत्य को ग्रहण लगा देगा! गाँधी ने अपने आसपास पाखंडियों की भीड़ को पहचान कर ही कहा था की आज़ादी के बाद कांग्रेस भंग कर देनी चाहिए!संभवतया यही गाँधी की हत्या का कारण भी रहा हो, बकरा बना गोडसे? हम उन्ही पाखंडियों का गुण गान गाते उन्हें व उनके पालतू , कुछ फालतू बोझ को बचाते देश को लूटने/ लुटाने में व्यस्त हैं जय गाँधी बाबा की सफ़ेद खादी ढक दे सभी कुकर्मों को नकली चेहरा सामने आये असली सूरत छुपी रहे !- भोपाल गैस त्रासदी से शिक्षा के बाद भी हमारी सरकारों की (आत्मा यदि जीवित है तो) चेत जाना चाहिए था किंतु दिल्ली की सरकार जिस परमाणु अप्रसार के जुड़े विधेयक को पास कराने पर जुटी है उसमें इसी तरह कंपनियों को बचाने के षडयंत्र हैं। लगता है कि हमारी सरकारें भारत के लोगों के द्वारा भले बनाई जाती हों किंतु वे चलाई कहीं और से जाती हैं। लोकतंत्र के लिए यह कितना बड़ा व्यंग है कि हम अपने लोगों की लाशों पर विदेशियों को मौत के कारखाने खोलने के लिए लाल कालीन बिछा रहे हैं। विदेशी निवेश के लिए कुछ भी शर्त मानने को हमारी सरकारें, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सब पगलाएं हैं। क्या यह न्यायोचित है?।
- जब देश और देशवासी ही सुरक्षित नहीं तो ऐसा औद्योगिक विकास लेकर हम क्या करेंगें। अपने लोगों की लाशें कंधे पर ढोते हुए ऐसा विकास क्या हम स्वीकार कर सकते है। इस घटना के बाद अब हम यह निर्णय लें कि हम सभी कंपनियों का नियमन करें,पर्यावरण से लेकर हर खतरनाक मुद्दे पर कड़े कानून बनाएं ताकि कंपनियां हमारे लोगों के स्वास्थ्य और उनके जान माल से न खेल सकें। निवेश केवल हमारी नहीं विदेशी कंपनियों की भी गरज है। किंतु वे यहां मौत के कारखाने खोलें और हमारे लोग मौत के शिकार बनते रहें यह कहां का न्याय है?। हमें सोचना होगा कि इस तरह के कामों की पुनरावृत्ति कैसे रोकी जा सकती है। यहां तक कि अपराधियों को बचाने व सजा काम कराने हेतु इस गैस त्रासदी के मूल प्रपत्रों से भी छेड़छाड़ की गयी।अब इस घृणित करम के बाद किस मुंह से लोग अपने नेताओं को पाक-साफ ठहराने की चेष्टा कर रहे हैं, कहा नहीं जा सकता?। । हमारे एक मित्र कहते हैं यह देश ऐसा क्यों है? बड़ी से मानवीय त्रासदी हमें क्यों नहीं हिलाती? हमारा स्मृतिदोष इतना विलक्षण क्यों है? हम क्यों भूलते और क्यों क्षमा कर देते हैं? राजनीति यदि ऐसी है तो इसके लिए क्या हम भारत के लोग दोषी नहीं है? क्या कारण है कि हमारे शिखर पुरूषों की चिंता का विषय आम भारतीय नहीं गोरी चमड़ी का वह आदमी है जिसे देश से निकालने के लिए वे सारे प्रबंध निपुणता से करते हैं। हमारे लोगों को सही प्रतिपूर्ति मिले, उनके घावों पर औषध का लेप लगे इसके बदले हम लीपा पोती करते दिखते हैं जिसने लिए हम बिक जाते हैं। पैसे की यह प्रकट पिपासा हमारी राजनीति, समाज जीवन, प्रशासनिक तंत्र सब जगह छा रही है।
- आम आदमी की पार्टी के नाम पर सत्ता पाने वालों के लिए आम भारतीय जान इतनी सस्ती है कि पूरा विश्व इस सत्य को जानने के बाद हम पर हंस रहा है। इस प्रसंग में संवैधानिक पद पर बैठा हर व्यक्ति अपनी दायित्व से भागता हुआ दिखा है। दिल्ली से लेकर भोपाल तक, रायसीना की पहाड़ियों से लेकर श्यामला हिल्स तक ये पाप-कथाएं पसरी पड़ी हैं। निचली अदालत के फैसले ने हमें झकझोर कर जगाया है किंतु कब तक। क्या न्याय मिलने तक। या हमेशा की तरह किसी नए विवादित मुद्दे के खुलने तक…
- भोपाल में निचली अदालत के निर्णय से और कुछ हो या न हो, हमारे तंत्र का नकली चेहरा स्पष्ट कर दिया है। देश के तंत्र के चारों स्तम्भ व उनपर खड़ी लोकतंत्र की छत आम आदमी के नहीं अपराधियों व केवल अपराधियों के संरक्षण के लिए बने हैं! स्थिति यह है कि कुछ लोग अभी भी जन हित सर्वोपरि मानते हैं जिन के अभियानों के दबाव प्रतिपूर्ति का निर्णय मिल सका, मिला। देश की सरकारों की ओर से न्यायपूर्ण प्रयास नहीं देखे गए। बिकाऊ मीडिया के बीच सत्य निष्ठ मीडिया के अवशेष अभी भी शेष हैं? आज भी भोपाल को लेकर मचा शोर इसलिए प्रखरता से दिख रहा है क्योंकि मीडिया ने इसमें रूचि ली और राजनैतिक दलों को बगलें झांकने को बाध्य कर दिया।
- एक ओर घोर बाजारवादी समाज के बीच उनके नेता ओबामा का राष्ट्रीय चरित्र दूसरी ओर आदर्शवादी समाज का आधुनिक नेतृत्व? विकसित होने की चाह ने विकास की नई राह ने कहाँ से कहाँ हमें गिराया है? धन व लोभ की भूख ने संवेदना व मानवता को मिटाया है! कुछ लोगों को मिली उपाधियों व व्यक्तिगत उपलब्धियों व बिकाऊ मीडिया ने हमें भरमाया है? सत्य जो अब भी समझ आया है, युगदर्पण ने अलख यही जगाया है। तिलक
- हमें लीपापोती व बाजारवादी सोच को त्यागना होगा, निश्चित ही जो झाड़ पे चडेगा, वो गिरेगा व मरेगा ! समाज तो समाज केन्द्रित सोच से ही सुदृद होगा-चिंतन।
अन्यत्र हिन्दू समाज व हिदुत्व और भारत को प्रभावित करने वाली जानकारी का दर्पण है विश्वदर्पण। आओ मिलकर इसे बनायें-तिलक