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Wednesday, November 9, 2016
अजहर मुद्दे में विलम्ब: भारत ने सुरक्षा परिषद की आलोचना की
अजहर मुद्दे में विलम्ब: भारत ने सुरक्षा परिषद की आलोचना की
तिलक नदि। भारत ने अपने ही हाथों आतंकवादी संगठन घोषित किए गए समूहों के नेताओं को प्रतिबंधित करने में महीनों लगाने पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तीखी आलोचना की है। उसकी यह आपत्ति पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया पर प्रतिबंध लगाने के भारत के प्रयास को ‘तकनीकी आधार पर’ खटाई में डालने पर था। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि सैयद अकबरूद्दीन ने सोमवार को यह कहते हुए आतंकवादी संगठनों के नेताओं पर प्रतिबंध लगाने में विफलता पर परिषद को लताड़ते हुए कहा कि सुरक्षा परिषद अपने ही ‘‘समय के जाल और राजनीति’’ में फंस गई है।
अकबरूद्दीन ने सुरक्षा परिषद के समतामूलक प्रतिनिधित्व और सदस्यता में वृद्धि पर आयोजित एक सत्र को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘जहां हर दिन इस या उस क्षेत्र में आतंकवादी हमारी सामूहिक अंतरात्मा आहत करते हैं, सुरक्षा परिषद ने इस पर विचार करने में नौ माह लगाए कि क्या अपने ही हाथों आतंकवादी इकाई घोषित किए गए संगठनों के नेताओं पर प्रतिबंध लगाया जाए या नहीं।’’
इससे पूर्व, इसी वर्ष चीन ने संयुक्त राष्ट्र में अजहर को आतंकवादी ठहराने के भारत के पग पर ‘‘तकनीकी स्थगन’’ लगा दिया था। तकनीकी स्थगन की छह माह की सीमा सितंबर में समाप्त हो गई थी और चीन ने तीन माह का एक दूसरा स्थगन चाहा था। भारतीय राजनयिक ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार पर कछुए की चाल से चलने वाली ‘‘चर्चा के अंतहीन क्रम’’ पर खेद जताया और कहा कि वर्तमान वैश्विक स्थिति के प्रति ‘‘असहयोगी’’ विश्व निकाय में तुरंत सुधार के लिए ‘‘गतिरोध भंग करने का यह समय है।’’
अकबरूद्दीन ने रेखांकित किया कि इस वर्ष मानवीय स्थितियों, आतंकवादी संकटों और शांतिरक्षण की समस्याओं के प्रति पग उठाने में अक्षमता प्रमुख मामलों में प्रगति करने में विश्व समुदाय की न्यूनता के मूल्य का भाग है जिसे चुकाया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘सीरिया जैसे अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए प्रमुख मुद्दों और दक्षिण सूडान जैसे शांतिरक्षण संकट जैसी अन्य स्थितियों से निबटने में हमने खंडित कार्रवाई देखी जिन्हें सहमति के महीनों बाद भी लागू नहीं किया गया।’’ भारतीय राजनयिक ने कहा, ‘‘कहा जा सकता है कि समय और राजनीति के अपने ही जाल में उलझी सुरक्षा परिषद तदर्थवाद और राजनीतिक पंगुता के आधार पर जैसे तैसे काम कर रही है।’’ उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधार पर चर्चाओं के अंतहीन क्रम से अंतरराष्ट्रीय समुदाय अचंभित है क्योंकि इसके महत्व और तात्कालिकता के बाद भी सुरक्षा परिषद के प्रमुख सुधार में विलम्ब की जा रही है। अकबरूद्दीन ने कहा, ‘‘सत्तर वर्ष पूर्व निर्धारित की गई इसकी सदस्यता, विशेष कर स्थाई श्रेणी में प्रतिनिधित्व की कमी इसकी वैधता और साख की कमी को भयावह करती है।’’ उन्होंने आशा जताई कि वर्तमान संयुक्त राष्ट्र महासभा अध्यक्ष पीटर थामसन के कार्यकाल में सुधार को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया होगी।
अन्यत्र, हिन्दू समाज व हिदुत्व और भारत,
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