Sunday, October 17, 2010
मानवता हितार्थ के निहितार्थ?
मानवता हितार्थ के निहितार्थ?
वामपंथियों ने स्वांग रचाया, पहन मुखौटा मानवता का;
ये ही तो देश को बाँट रहे हैं, पहन मुखौटा मानवता का !!
मैं अच्छा हूँ बुरा विरोधी, कहने को तो सब ही कहते हैं;
नकली चेहरों के पीछे किन्तु, जो असली चेहरे रहते हैं;
आओ अन्दर झांक के देखें,और सच की पहचान करें;
कौन है मानवतावादी और, शत्रु कौन, इसकी जाँच करें!
मानवतावादी बनकर जो हमको, प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं;
चर- अचर, प्रकृति व पाषाण, यहाँ सारे ही पूजे जाते हैं;
है केवल हिन्दू ही जो मानता, विश्व को एक परिवार सा;
किसके कण कण में प्रेम बसा, यह विश्व है सारा जानता!
यही प्रेम जो हमारी शक्ति है कभी दुर्बलता न बन जाये;
अहिंसक होने का अर्थ कहीं, कायरता ही न बन जाये ?
इसीलिए जब भी शक्ति की, हम पूजा करने लग जाते हैं;
तब कुछ मूरख व शत्रु हमारे, दोनों थर्राने लग जाते हैं!
शत्रु भय से व मूरख भ्रम से, चिल्लाते जो देख आइना;
मानवता के रक्षक को ही वो, मानवता का शत्रु बतलाते;
नहीं शत्रु हम किसी देश के, किसी धर्म औ मानवता के;
चाहते इस सोच की रक्षा हेतु, हिंदुत्व को रखें बचाके !
अमेरिका में यदि अमरीकी ही अस्तित्व पे संकट आए;
52 मुस्लिम देशों में ही जब, इस्लाम को कुचला जाये;
तब जो हो सकता है दुनिया में, वो भारत में हो जाये;
जब हिन्दू के अस्तित्व पर भारत में ही संकट छाये!
जब हिन्दू के अस्तित्व पर भारत में ही संकट छाये!!अन्यत्र हिन्दू समाज व हिदुत्व और भारत को प्रभावित करने वाली जानकारी का दर्पण है विश्वदर्पण.आओ मिलकर इसे बनायें-तिलक
Saturday, September 11, 2010
आत्मग्लानी नहीं स्वगौरव का भाव जगाएं, विश्वगुरु
आत्मग्लानी नहीं स्वगौरव का भाव जगाएं, विश्वगुरु मैकाले व वामपंथियों से प्रभावित कुशिक्षा से पीड़ित समाज का एक वर्ग, जिसे देश की श्रेष्ठ संस्कृति, आदर्श, मान्यताएं, परम्पराएँ, संस्कारों का ज्ञान नहीं है अथवा स्वीकारने की नहीं नकारने की शिक्षा में पाले होने से असहजता का अनुभव होता है! उनकी हर बात आत्मग्लानी की ही होती है! स्वगौरव की बात को काटना उनकी प्रवृति बन चुकी है! उनका विकास स्वार्थ परक भौतिक विकास है, समाज शक्ति का उसमें कोई स्थान नहीं है! देश की श्रेष्ठ संस्कृति, परम्परा व स्वगौरव की बात उन्हें समझ नहीं आती!
किसी सुन्दर चित्र पर कोई गन्दगी या कीचड़ के छींटे पड़ जाएँ तो उस चित्र का क्या दोष? हमारी सभ्यता "विश्व के मानव ही नहीं चर अचर से,प्रकृति व सृष्टि के कण कण से प्यार " सिखाती है..असभ्यता के प्रदुषण से प्रदूषित हो गई है, शोधित होने के बाद फिर चमकेगी, किन्तु हमारे दुष्ट स्वार्थी नेता उसे और प्रदूषित करने में लगे हैं, देश को बेचा जा रहा है, घोर संकट की घडी है, आत्मग्लानी का भाव हमे इस संकट से उबरने नहीं देगा. मैकाले व वामपंथियों ने इस देश को आत्मग्लानी ही दी है, हम उसका अनुसरण नहीं निराकरण करें, देश सुधार की पहली शर्त यही है, देश भक्ति भी यही है !
अन्यत्र हिन्दू समाज व हिदुत्व और भारत को प्रभावित करने वाली
जानकारी का दर्पण है विश्वदर्पण.आओ मिलकर इसे बनायें-तिलक
Thursday, June 17, 2010
भारत व अमेरिका की दुर्घटनाएं (राष्ट्रीय चरित्र)
भारत व अमेरिका की दुर्घटनाएं (राष्ट्रीय चरित्र)
ओबामा के उबाल का कमाल: अमेरिका की समुद्र तटीय सीमा पर ब्रिटिश पेट्रोलियम के साथ सहयोगी ट्रांस ओशियन व हैल्लीबर्टन सभी द्वारा तेल निकासी में असावधानी हुई - दुर्घटना घटी ! इसमें 11 लोगों की मृत्यु हुई साथ ही समुद्री कछुए , पक्षी , डालफिन भी मारे गए ! अमेरिकी पर्यटन व मछली उद्योग को भी क्षति पहुंची !इस पर अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा उबल पड़े! विदेशी कं. ब्रि.पै. के क्षेत्र के प्रमुख को बुला लिया (व्हाइट हॉउस)! अमेरिका की विदेश नीति व विदेशियों के प्रति उनका व्यवहार सदा ही मेरी आलोचना का पात्र रहे हैं किन्तु उनके नेता अपने देश व देश वासियों के हितों का समझौता नहीं करते बल्कि उनके हित में करार करने को बेकरार होते हैं! उनका व्यक्तिगत चरित्र भले ही गिर जाये राष्ट्रीय चरित्र सदा प्रदर्शित हुआ है!
ओबामा ने कहा था मैं उनकी गर्दन पर पैर रख कर प्रति पूर्ति निकलवाऊंगा ,उसे पूरा कर दिखाया! त्रासदी के 2 माह में करार हो गया (अधिकारों का सदुपयोग अपने लिए नहीं देश के लिए)20 अरब डालर(1000 अरब रु.) - दोष उनके अपने लोगों का भी था किन्तु उन्हें साफ बचा कर ब्रि.पै. पर पूरा दोष जड़ते हुए करार करने में सफल होने पर कोई उंगली नहीं उठी!
भोपाल गैस त्रासदी:- वैसे तो 1984 में 2 प्रमुख दुखद घटनाएँ घटी, किन्तु यहाँ एक की तुलना उपरोक्त से की जा सकती है चर्चा में ली जाती है! वह है भोपाल गैस त्रासदी --बताया जाता है इसमें 15000 सीधे सीधे दम घुटने से अकाल मृत्यु का ग्रास बने, 5 लाख शारीरिक विकार व भयावह कष्टपूर्ण अमानवीय यंत्रणा/त्रास /नरक भोगते हुए मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे हैं ! तो उनकी अगली पीडी भी इसे भोगने को अभिशप्त होगी! इससे वीभत्स और क्या होगा? इस सब के लिए उनका अपना कोई दोष नहीं था किन्तु दूसरों के दोष का दंड इन्हें भुगतना पड़ा ! क्यों? पशु पक्षियों का हिसाब हम तब लगाते यदि मानव को कीड़े मकोड़े से अधिक महत्व दे पाते? उद्योग/व्यवसाय की हानी तब देखते जब अपनी तिजोरियां स्विस खातों तक न भरी जातीं!एंडरसन को दिल्ली बुला कर कड़े शब्दों में देश/ जनहित का करार करने का दबाव बनाना तो दूर दिल्ली से आदेश भेजा गया उसे छोड़ने का, वह भी पूरे सम्मान के साथ ?
बात इतनी ही होती तो झेल जाते, उनका चरित्र देखें, धोखा अपनों को दिया और नहीं पछताते ?
कां. का इतिहास देखें एक परिवार की इच्छा के बिना पत्ता नहीं हिलता, अर्जुन सिंह यह निर्णय लेने के सक्षम नहीं, दिल्ली से आदेश आया को ठोस आधार मानने के अतिरिक्त ओर कुछ संकेत नहीं मिलता? उस शीर्ष केंद्र को बचाने के प्रयास में भले ही बलि का बकरा अर्जुन बने या सरकारी अधिकारी?
प्रतिपूर्ति की बात 14फरवरी, 1989 भारत सरकार के माध्यम 705 करोर रु. में गंभीर क़ानूनी व अपराधिक आरोप से कं. को मुक्त करने का दबाव निर्णायक परिणति में बदल गया! 15000 के जीवन का मूल्य हमारे दरिंदों ने लगाया 12000 रु. मात्र प्रति व्यक्ति 5 लाख पीड़ित व वातावरण के अन्य जीव- जंतु , अन्य हानियाँ = शुन्य? कितने संवेदन शुन्य कर्णधारों के हाथ में है यह देश?
दोषी कं अधिकारिओं को दण्डित करने के प्रश्न पर भी 1996 में विदेशी कं को गंभीरतम आरोपों से बचाने हेतु धारा 304 से 304 ए में बदलने का दोषी कौन? फिर वह भी मुख्य आरोपी को भगा कर अन्य को मात्र 2 वर्ष का कारावास,मात्र 1 लाख रु. का अर्थ दंड क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि मुख्य अपराधी कि जगह बने बलि के बकरे को पहले ही आश्वस्त किया गया हो बकरा बन जा न्यूनतम दंड अधिकतम गुप्त लाभ?
एंडरसन के जाने के बाद इतनी सफाई से उसके हितों कि रक्षा करने वाला कौन? जिसके तार ही नहीं निष्ठा भी पश्चिम से जुडी हो? स्व. राजीव गाँधी के घर ऐसा कौन था? अपने क्षुद्र स्वार्थ त्याग कर देश के उन शत्रुओं की पहचान होनी ही चाहिए।
इसे किसी भी आवरण से ढकना सबसे बड़ा राष्ट्र द्रोह होगा? अब ये प्रमाण सामने आ चुके हैं कि 3 दिसंबर,1984 को अंकित कांड की प्राथमिकी और 5 दिसंबर को न्यायलय के रिमांड आर्डर में भारी परिवर्तन किया गया। इतना सब होने के बाद भी हमारी बेशर्म राजनीति हमें न्याय दिलाने का आश्वासन दे रही है? जल्लादों के हाथ में ही न्याय की पोथी थमा दी गयी है। स्पष्ट है वे जो भी करेंगें वह जंगल का ही न्याय होगा? उस समय हम चूक गए पर अबके किसी मूल्य पर चूकना नहीं है।अपने व अगली पीडी के भविष्य के लिए? लड़ते हुए हार जाते तो इतना दुःख न था जा के दुश्मन से मिल गए ऐसे निकले?
तिलक राज रेलन
एक (दुर)घटना 1984 में भारत के भोपाल की, दूसरी 2010 में अमेरिका की, व हमारे नेतृत्व के चरित्र का खुला चित्रण
एक (दुर)घटना 1984 में भारत के भोपाल की, दूसरी 2010 में अमेरिका की, व हमारे नेतृत्व के चरित्र का खुला चित्रण
अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने अपने देश के लिए ब्रिटिश पेट्रोलियम के क्षे.प्र. कार्ल हेनरिक स्वैन बर्ग की गर्दन दबाई!
ओबामा ने कहा था मैं उनकी गर्दन पर पैर रख कर प्रति पूर्ति निकलवाऊंगा ,उसे पूरा कर दिखाया! त्रासदी के 2 माह में करार हो गया (अधिकारों का सदुपयोग अपने लिए नहीं देश के लिए)20 अरब डालर(1000 अरब रु.) - दोष उनके अपने लोगों का भी था किन्तु उन्हें साफ बचा कर ब्रि.पै. पर पूरा दोष जड़ते हुए करार करने में सफल होने पर कोई उंगली नहीं उठी!
विश्व की सर्वाधिक भयावह औद्योगिक त्रासदी के पीड़ितों को अभी तक न्याय नहीं !
बात इतनी ही होती तो झेल जाते, उनका चरित्र देखें, धोखा अपनों को दिया और नहीं पछताते ?
कां. का इतिहास देखें एक परिवार की इच्छा के बिना पत्ता नहीं हिलता, अर्जुन सिंह यह निर्णय लेने के सक्षम नहीं, दिल्ली से आदेश आया को ठोस आधार मानने के अतिरिक्त ओर कुछ संकेत नहीं मिलता? उस शीर्ष केंद्र को बचाने के प्रयास में भले ही बलि का बकरा अर्जुन बने या सरकारी अधिकारी?
प्रतिपूर्ति की बात 14फरवरी, 1989 भारत सरकार के माध्यम 705 करोर रु. में गंभीर क़ानूनी व अपराधिक आरोप से कं. को मुक्त करने का दबाव निर्णायक परिणति में बदल गया! 15000 के जीवन का मूल्य हमारे दरिंदों ने लगाया 12000 रु. मात्र प्रति व्यक्ति 5 लाख पीड़ित व वातावरण के अन्य जीव- जंतु , अन्य हानियाँ = शुन्य? कितने संवेदन शुन्य कर्णधारों के हाथ में है यह देश?
दोषी कं अधिकारिओं को दण्डित करने के प्रश्न पर भी 1996 में विदेशी कं को गंभीरतम आरोपों से बचाने हेतु धारा 304 से 304 ए में बदलने का दोषी कौन? फिर वह भी मुख्य आरोपी को भगा कर अन्य को मात्र 2 वर्ष का कारावास,मात्र 1 लाख रु. का अर्थ दंड क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि मुख्य अपराधी कि जगह बने बलि के बकरे को पहले ही आश्वस्त किया गया हो बकरा बन जा न्यूनतम दंड अधिकतम गुप्त लाभ?
एंडरसन के जाने के बाद इतनी सफाई से उसके हितों कि रक्षा करने वाला कौन? जिसके तार ही नहीं निष्ठा भी पश्चिम से जुडी हो? स्व. राजीव गाँधी के घर ऐसा कौन था? अपने क्षुद्र स्वार्थ त्याग कर देश के उन शत्रुओं की पहचान होनी ही चाहिए।
इसे किसी भी आवरण से ढकना सबसे बड़ा राष्ट्र द्रोह होगा? अब ये प्रमाण सामने आ चुके हैं कि 3 दिसंबर,1984 को अंकित कांड की प्राथमिकी और 5 दिसंबर को न्यायलय के रिमांड आर्डर में भारी परिवर्तन किया गया। इतना सब होने के बाद भी हमारी बेशर्म राजनीति हमें न्याय दिलाने का आश्वासन दे रही है? जल्लादों के हाथ में ही न्याय की पोथी थमा दी गयी है। स्पष्ट है वे जो भी करेंगें वह जंगल का ही न्याय होगा? उस समय हम चूक गए पर अबके किसी मूल्य पर चूकना नहीं है।अपने व अगली पीडी के भविष्य के लिए? लड़ते हुए हार जाते तो इतना दुःख न था जा के दुश्मन से मिल गए ऐसे निकले?
1984 के पाप के बाद क्या अब भी नहीं सुधरेंगे? मंत्री मंडलीय समिति का गठन ऐसे समय में करना जब सब जानते हैं सांप को भगा देने पर लकड़ी पीटने का नाटक किया जा रहा है! नीचता की इस सीमा को देखते हुए कोई स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिए जो निश्छल हो, जनहित में व स्वीकार्य होभोपाल गैस त्रासदी के नवीनतम प्रमाण इसके प्रति कांग्रेस व उसकी सरकारों के असंवेदनशील, निकृष्टतम, दुष्कृत्यों पर कथित योग्य व इमानदार प्र. मं. मनमोहन सिंह देश को स्पष्टीकरण दें
जिनके बिना कां. या सरकार के किसी प्रवक्ता को सुनने वाला कोई नहीं है ?
भौकने वाले पालतू हों या फालतू क्या लेना, बकवास ही सुननी है उनके मालिक ही बकें!
राजनीति की इन घृणित सच्चाइयों पर अब देश की सबसे सत्यवादी,स्वतंत्रता की जनक संविधान रचयिता INC (InterNational Crooks) पार्टी के प्रवक्ता का वक्तव्य सुनिए। वे कह रहे हैं कि अगर एंडरसन को देश से निकाला नहीं जाता तो भीड़ उन्हें मार डालती। देखिए कसाब को जेल में रखने और सुरक्षा देने में नाहक कितना खर्च आ रहा है? वाह हमारे नेता जी और आपकी राजनीति। अपराधियों को दण्डित करने पर व्यय से उत्तम है जेल के फाटक खोल दिए जाएं। इतने अपराधियों और आरोपियों पर हो रहा खर्च बच जाएगा।- इस बेशर्मी का कारण मात्र यह है कि हमारे पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी का नाम इस विवाद से जुड़ा है। अब कांग्रेस और उस पर अंध भक्ति रखने वाले कैसे स्वीकार करे कि गांधी परिवार के उत्तराधिकारियों से भी कभी कोई पाप हो सकता है। देवकांत बरूआ के ‘इंदिरा इज इंडिया’ के नारे व तलवा चाटू संस्कार पाकर बड़े हुए आज के कांग्रेसजन चाटुकारिता की इस प्रतियोगिता में पीछे कैसे रह सकते हैं?।
- कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है सजा दिलाने के लिए कानूनों में परिवर्तन करना चाहिए। विगत 25 वर्ष आप इन सुविचारों के साथ किस कन्दरा में थे मान्यवर? झूठ पर खड़ी कां. व राजीव की छवि कब तक सत्य के प्रकाश से बचाओगे , व इसके लिए कितना गिरोगे ?
क्या मंत्री मंडलीय समिति सक्षम है? चर्चा कर सुनिश्चित कर सके वास्तविक दोषी वास्तव में दण्डित हों? इसके लिए पूरी प्रक्रिया परिवार निष्ठा से नहीं, पूरी सत्य निष्ठा से चले, मंत्रियों/शीर्ष नेताओं व मीडिया वालों से अनुरोध है वे, इन गंभीर प्रश्नों के उत्तर प्र.मं./ सोनिया जी से लें! उससे कम की बकवास से देश वासियों को न छलें! लीपापोती न होकर पीड़ितों को राहत मिल सके?
15000 मृतक नागरिकों,व अन्य पीड़ितों के परिजनों को न्याय मिलने से पूर्व एंडरसन मात्र 6 दिन में कैसे इस देश को छोड़ के जा सका? इतना ही नहीं 15 हजार हत्याओं का दोषी यह व्यक्ति दिल्ली में राष्ट्रपति से भेंट भी करता है।
पीड़ितों के प्रति असंवेदन शीलता, न्याय के प्रति तिरस्कार,समाज व देश के प्रति दायित्व हीनता की कांग्रेसी मानसिकता का इससे बड़ा प्रमाण कुछ और चाहिए तो देखते रहें । अभी तो खेल खुलने लगा हैं! आगे भी यही होगा न्यूनतम दंड अधिकं गुप्त लाभ पाकर बलि का बकरा सत्य को ग्रहण लगा देगा! गाँधी ने अपने आसपास पाखंडियों की भीड़ को पहचान कर ही कहा था की आज़ादी के बाद कांग्रेस भंग कर देनी चाहिए!संभवतया यही गाँधी की हत्या का कारण भी रहा हो, बकरा बना गोडसे? हम उन्ही पाखंडियों का गुण गान गाते उन्हें व उनके पालतू , कुछ फालतू बोझ को बचाते देश को लूटने/ लुटाने में व्यस्त हैं जय गाँधी बाबा की सफ़ेद खादी ढक दे सभी कुकर्मों को नकली चेहरा सामने आये असली सूरत छुपी रहे !- भोपाल गैस त्रासदी से शिक्षा के बाद भी हमारी सरकारों की (आत्मा यदि जीवित है तो) चेत जाना चाहिए था किंतु दिल्ली की सरकार जिस परमाणु अप्रसार के जुड़े विधेयक को पास कराने पर जुटी है उसमें इसी तरह कंपनियों को बचाने के षडयंत्र हैं। लगता है कि हमारी सरकारें भारत के लोगों के द्वारा भले बनाई जाती हों किंतु वे चलाई कहीं और से जाती हैं। लोकतंत्र के लिए यह कितना बड़ा व्यंग है कि हम अपने लोगों की लाशों पर विदेशियों को मौत के कारखाने खोलने के लिए लाल कालीन बिछा रहे हैं। विदेशी निवेश के लिए कुछ भी शर्त मानने को हमारी सरकारें, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सब पगलाएं हैं। क्या यह न्यायोचित है?।
- जब देश और देशवासी ही सुरक्षित नहीं तो ऐसा औद्योगिक विकास लेकर हम क्या करेंगें। अपने लोगों की लाशें कंधे पर ढोते हुए ऐसा विकास क्या हम स्वीकार कर सकते है। इस घटना के बाद अब हम यह निर्णय लें कि हम सभी कंपनियों का नियमन करें,पर्यावरण से लेकर हर खतरनाक मुद्दे पर कड़े कानून बनाएं ताकि कंपनियां हमारे लोगों के स्वास्थ्य और उनके जान माल से न खेल सकें। निवेश केवल हमारी नहीं विदेशी कंपनियों की भी गरज है। किंतु वे यहां मौत के कारखाने खोलें और हमारे लोग मौत के शिकार बनते रहें यह कहां का न्याय है?। हमें सोचना होगा कि इस तरह के कामों की पुनरावृत्ति कैसे रोकी जा सकती है। यहां तक कि अपराधियों को बचाने व सजा काम कराने हेतु इस गैस त्रासदी के मूल प्रपत्रों से भी छेड़छाड़ की गयी।अब इस घृणित करम के बाद किस मुंह से लोग अपने नेताओं को पाक-साफ ठहराने की चेष्टा कर रहे हैं, कहा नहीं जा सकता?। । हमारे एक मित्र कहते हैं यह देश ऐसा क्यों है? बड़ी से मानवीय त्रासदी हमें क्यों नहीं हिलाती? हमारा स्मृतिदोष इतना विलक्षण क्यों है? हम क्यों भूलते और क्यों क्षमा कर देते हैं? राजनीति यदि ऐसी है तो इसके लिए क्या हम भारत के लोग दोषी नहीं है? क्या कारण है कि हमारे शिखर पुरूषों की चिंता का विषय आम भारतीय नहीं गोरी चमड़ी का वह आदमी है जिसे देश से निकालने के लिए वे सारे प्रबंध निपुणता से करते हैं। हमारे लोगों को सही प्रतिपूर्ति मिले, उनके घावों पर औषध का लेप लगे इसके बदले हम लीपा पोती करते दिखते हैं जिसने लिए हम बिक जाते हैं। पैसे की यह प्रकट पिपासा हमारी राजनीति, समाज जीवन, प्रशासनिक तंत्र सब जगह छा रही है।
- आम आदमी की पार्टी के नाम पर सत्ता पाने वालों के लिए आम भारतीय जान इतनी सस्ती है कि पूरा विश्व इस सत्य को जानने के बाद हम पर हंस रहा है। इस प्रसंग में संवैधानिक पद पर बैठा हर व्यक्ति अपनी दायित्व से भागता हुआ दिखा है। दिल्ली से लेकर भोपाल तक, रायसीना की पहाड़ियों से लेकर श्यामला हिल्स तक ये पाप-कथाएं पसरी पड़ी हैं। निचली अदालत के फैसले ने हमें झकझोर कर जगाया है किंतु कब तक। क्या न्याय मिलने तक। या हमेशा की तरह किसी नए विवादित मुद्दे के खुलने तक…
- भोपाल में निचली अदालत के निर्णय से और कुछ हो या न हो, हमारे तंत्र का नकली चेहरा स्पष्ट कर दिया है। देश के तंत्र के चारों स्तम्भ व उनपर खड़ी लोकतंत्र की छत आम आदमी के नहीं अपराधियों व केवल अपराधियों के संरक्षण के लिए बने हैं! स्थिति यह है कि कुछ लोग अभी भी जन हित सर्वोपरि मानते हैं जिन के अभियानों के दबाव प्रतिपूर्ति का निर्णय मिल सका, मिला। देश की सरकारों की ओर से न्यायपूर्ण प्रयास नहीं देखे गए। बिकाऊ मीडिया के बीच सत्य निष्ठ मीडिया के अवशेष अभी भी शेष हैं? आज भी भोपाल को लेकर मचा शोर इसलिए प्रखरता से दिख रहा है क्योंकि मीडिया ने इसमें रूचि ली और राजनैतिक दलों को बगलें झांकने को बाध्य कर दिया।
- एक ओर घोर बाजारवादी समाज के बीच उनके नेता ओबामा का राष्ट्रीय चरित्र दूसरी ओर आदर्शवादी समाज का आधुनिक नेतृत्व? विकसित होने की चाह ने विकास की नई राह ने कहाँ से कहाँ हमें गिराया है? धन व लोभ की भूख ने संवेदना व मानवता को मिटाया है! कुछ लोगों को मिली उपाधियों व व्यक्तिगत उपलब्धियों व बिकाऊ मीडिया ने हमें भरमाया है? सत्य जो अब भी समझ आया है, युगदर्पण ने अलख यही जगाया है। तिलक
- हमें लीपापोती व बाजारवादी सोच को त्यागना होगा, निश्चित ही जो झाड़ पे चडेगा, वो गिरेगा व मरेगा ! समाज तो समाज केन्द्रित सोच से ही सुदृद होगा-चिंतन।
अन्यत्र हिन्दू समाज व हिदुत्व और भारत को प्रभावित करने वाली जानकारी का दर्पण है विश्वदर्पण। आओ मिलकर इसे बनायें-तिलक
Monday, May 17, 2010
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